Wednesday, June 16, 2010

Sunday, January 10, 2010

बागियों के नाम

यूं ही चलता रहा वक़्त का सिलसिला,


और करता रहा वादियों को सलाम।


यूं गुजरता रहा रातों दिन जुल्म से


हर बगावत से पाता रहा एक मुकाम।


अपने अपने समय के मेरे बागियो!


इस समय का तुम्हारे समय को सलाम।


हर बगावत ने जो भी नया रचा,


गीत नग़्मा रूबाई गजल को सलाम।


सिलसिलों को सलाम


मंजिलों को सलाम


आने वाले तेरे मेरे कल को सलाम! -


‘गिर्दा’