यूं ही चलता रहा वक़्त का सिलसिला, 
और करता रहा वादियों को सलाम।
यूं गुजरता रहा रातों दिन जुल्म से
हर बगावत से पाता रहा एक मुकाम।
अपने अपने समय के मेरे बागियो!
इस समय का तुम्हारे समय को सलाम।
हर बगावत ने जो भी नया रचा,
गीत नग़्मा रूबाई गजल को सलाम।
सिलसिलों को सलाम
मंजिलों को सलाम
आने वाले तेरे मेरे कल को सलाम! -
‘गिर्दा’